इतिहास

श्री शिव नाडर, एचसीएल के संथापक, जो एक 10 बिलियन का वैश्विक उद्यम है ने शिव नाडर फ़ाउंडेशन की स्थापना सन 1994 में करी संस्था का उद्देश्य व्यक्ति विशेष को शिक्षा के माध्यम से सशक्त करके एक समान अवसर वाले समाज की स्थापना करना था जिससे सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी की खाई को पाटा जा सके|

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्था ने भारत के विकासशील इलाकों में शहरी एवं ग्रामीण शिक्षा एवं कला से संबंधित शिक्षण संस्थान एवं शैक्षिक कार्यक्रम आरंभ करे|

शिव नाडर फ़ाउंडेशन बढ़ावा देता है रचनात्मक दर्शनशास्त्र को उनका मानना है की यह एक शक्तिशाली मॉडेल है जिसकी परिकल्पना संस्थापक के जीवन काल के बाद भी आने वाली तमाम पीढ़ियों को सदियों तक लाभान्वित करती रहेंगी| यह एक दृष्टिकोण है, जो समाज में एक लंबे समय तक लगातार चलने वाला, ज्यादा असरदार सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन है|

पिछले 25 वर्षों से शिव नाडर फ़ाउंडेशन ने समावेशी शिक्षा के लिए, प्राथमिक, मध्य (मिडिल) और उच्च शिक्षा को अधिक प्रभावी, गुणवत्ता परक बनाने के लिए कड़ी मेहनत की, ताकि श्रम बाज़ार की विशेष जरूरतों को पूरा करने, शोध परक शिक्षा को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया ताकि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रासंगिक शिक्षा में सहयोग कर सकें| इसका उद्देश्य समाज के हाशिये पर रह रहे समुदाय से प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वालों को तैयार किया जा सकें|

शिक्षा इनिशिएटिव की शुरुवात सन 2012 में एक ऐसे मॉडल के रूप में की गयी, जो आसानी से दोहराया और मापा जा सके| इसको सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा इनिशिएटिव दो चरणों में आरंभ किया गया उदाहरण स्वरूप ओपेन लैब जिसे अब सेंटर ऑफ एक्सलेन्स कहते हैं और प्रोजेक्ट एक्सपेंशन या सीतापुर मॉडल| सेंटर ऑफ एक्सलेन्स शिक्षा कार्यक्रम के विकास में सहयोग देते हैं जो इसको मान्यता प्राप्त करने और बेहतर करने में सक्षम करता हैं इसके अतिरिक्त यह ज्ञान के विकास में सहयोग दे कर एक्सपेंशन की रणनीति टीम की भी सहायता करते हैं| शिक्षा एक विस्तृत मॉडेल बनाकर नए अधिगम की नीव तैयार करने और उसको शिक्षा के विभिन्न मॉडेल (स्वरूप) में सम्मिलित करने पर ज़ोर देती हैं| इसके अंतर्गत प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता का आंकलन करना, प्रदर्शन के मानदण्ड को सुनिश्चित करना ताकि उसको अधिक से अधिक लागू किया जा सके| जिससे रुचिपूर्ण ढांचा तैयार कर उत्पाद या आउटपुट को बढ़ाया जा सके| सारांश में, सेंटर ऑफ एक्सलेन्स कार्यक्रम के विकास में विभिन्न प्रकार के बेहतर अभ्यास को महत्व देने के साथ साथ, इलेक्ट्रोनिक कौशल के आंकलन और लगाने से संबन्धित ज्ञान को सहेज कर शिक्षा के सफल मॉडेल को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल करना|

सेंटर ऑफ एक्सलेन्स चार प्राथमिक विद्यालयों और चार युवा स्फूर्तिवान शैक्षिक अनुभव वाले टीम के सदस्यों के साथ आरंभ हुआ, प्रत्येक को एक विद्यालय सौंपा गया प्रारंभ में इन सदस्यों को सभी उपकरण जिसमें इंवर्टर, बेटरी, प्रॉजेक्टर और लैपटाप प्रतिदिन अपने साथ ले जाने होते थे जहां वह परस्पर संवाद डिजिटल सामग्री के माध्यम से करते थे| इस चार विद्यालयों की सीख और अनुभव को आगे बढ़ाते हुए दो जिलों में सन 2013 में गौतम बुध नगर और बुलंदशहर में 20 विद्यालय हो गए| साथ ही कक्षा 1 और 2 के लिए उत्तर प्रदेश बोर्ड आधारित डिजिटल सामग्री का निर्माण, परीक्षण और उसको लागू करना भी इसी समय आरंभ हुआ| 2014 में यह परियोजना 40 विद्यालयों के माध्यम से लगभग 5000 विद्यार्थियों तक पहुँच गयी थी| इसी समय टेकनोंलोजी का परीक्षण आरंभ करने की पहल हुई और फील्ड ऑफिसर ( टीचर इन ओपेन लैब ) को प्रशिक्षित किया गया, पाठ्यक्रम तैयार था और टीम इस संरचना को अगले चरण में ले जाने के लिए पूरी तरह आशान्वित थी| 2015 में इसी लक्ष्य के साथ 3 जिलों ( मिर्ज़ापुर, हरदोई और हाथरस) के 300 विद्यालय तक बढ़ चुके थे यह मापदंड और एक्सपेंशन के भविष्य दोनों के हिसाब से सही था| 2016 में मैनेजमेंट ने एक रणनीतिज्ञ फैसला लिया और संयुक्त रूप से सभी संचालन का रुख एक नयी दिशा अर्थात कसमंडा ब्लॉक, जिला सीतापुर की ओर मोड दिया वैसे भी शिक्षा मॉडेल का मकसद विस्तार ना होकर इसको प्रत्येक स्थिति में किस प्रकार से दौहराया और मापनीय बनाया जा सकता है इस पर था| अतः इसे उन तीनों जिलों से हटा कर केवल सीतापुर में परीक्षण के तौर पर लागू किया गया|